आयुर्वेद में शहद का महत्व: एक अमृत औषधि

आयुर्वेद में शहद का महत्व: एक अमृत औषधि

आयुर्वेद में शहद का महत्व: एक अमृत औषधि
आयुर्वेद में शहद का महत्व: एक अमृत औषधि

शहद, जिसे अक्सर "दिव्य अमृत" या "प्राकृतिक मधु" के रूप में जाना जाता है, सदियों से आयुर्वेद में एक विशेष स्थान रखता है, जो कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है। आयुर्वेद में शहद को बस मिठास नहीं, बल्कि बेहद शक्तिशाली चिकित्सा औषधि के रूप में माना गया है।

इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आयुर्वेद में शहद की समृद्ध विविधता को खोजेंगे, इसकी विभिन्न गुणों को और इसमें पारंपरिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है
आयुर्वेद में शहद को एक महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है।


धन्वंतरि भगवान की आराधना के दौरान शास्त्रों के अनुसार, शहद निम्नलिखित गुणों से भरपूर होता है:

"मधु सर्व विकार शमनं" - मधु सभी रोगों को ठीक करता है।

"जीवनीयम्, भेषजं, श्रेष्ठं, मधु" - मधु सभी जीवन बढ़ाने और औषधीय पदार्थों में सबसे अच्छा है।

"मधुराम्ल तिक्ता कटु श्लेष्म हराम" - मधु स्वाद में मीठा, खट्टा, तीखा और कटु होता है और श्लेष्म को दूर करता है।

"वर्ण्याम् मधु" - मधु त्वचा को सुंदर बनाता है और त्वचा स्वास्थ्य को बढ़ाता है।

"मधु श्रमश्रमहरः" - मधु थकान और थकावट को दूर करता है।

"मधुरो वातघ्नो दृष्टः" - मधु वात विकार से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद होता है।

"मधुर श्लेष्म नाशनम्" - मधु अधिक श्लेष्म को कम करता है।

"मधुर तृष्णशमनम्" - मधु तृष्णा को दूर करता है।

"मधुर स्निग्धः सुखप्रदः" - मधु तरल होता है और आराम प्रदान करता है।

"मधुःपाचनं श्लेष्महरः" - मधु पचन करता है और श्लेष्म को दूर करता है।

"मधु शुक्रवर्धकं" - मधु वीर्य उत्पादन बढ़ाता है।

"मधु चक्षुष्यां" - मधु दृष्टि को सुधारता है।

"मधु वाजीकरणं" - मधु वीर्य उत्तेजक होता है।

"मधु सन्तर्पणं श्लेष्महरं" - मधु शरीर को पोषण और मजबूत करता है।

"मधु विस्फोटहरं" - मधु फोड़े और फुंसियों को ठीक करने में मदद करता है।

"मधुर क्षय प्रशमनं" - मधुर दोषों को दूर करने में मदद करता है।

"मधुर हृद्यं" - मधुर दिल के लिए अच्छा होता है।

"मधुर क्षतक्षीणं" - मधुर घावों को भरने में मदद करता है।

"मधु ज्वरहरं" - मधु बुखार को कम करता है।

"मधुर कंडूग्नं" - मधुर खुजली को दूर करता है।

"मधु रक्तपित्तनाशनं" - मधुर खून बहने की बीमारियों को कम करता है।

"मधु यकृत विकार नाशनं" - मधु यकृत रोगों के लिए अच्छा होता है।

"मधुर बल्यं" - मधुर बल प्रदान करता है। "

मधुर स्निग्धं वातहरं" - मधुर स्निग्ध होते हुए वात दोष को कम करता है।

"मधुर दुर्गंधविहीन" - मधु खुशबू से रहित है।

"मधुर कृमिघ्न" - मधु कीटों को नष्ट करता है।

"मधु क्षारयुक्ताम्ला" - मधु अम्लीय और अल्कली गुणों से भरपूर है।

"मधुर कुष्ठघ्न" - मधु कुष्ठ रोग को ठीक करता है।

"मधु कफपित्तनाशक" - मधु कफ और पित्त दोष को कम करता है।

"मधुर वयस्थापक" - मधु युवापन को बनाए रखने में मदद करता है।

"मधुर व्रणारोपण" - मधु घावों को ठीक करने में मदद करता है।

"मधु स्रोतोविशोधन" - मधु शरीर की नालियों को साफ करता है।

"मधुर क्षय वातशामकं" - मधु महावात विकार और दुर्बलता को दूर करता है।

इन गुणों के कारण, शास्त्रों में शहद को एक अमृत औषधि माना जाता है और इसे रोगों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।

शुक्रं मधुम् कपिलाशुकलं षड्वल्गं च रम्यम् ।

शीतं मधुरं कटुकं च मधु श्लेष्मल हरं भवेत् ॥


इस श्लोक का हिंदी अनुवाद होता है:
"शुक्रं" - सफेद, "मधुम्" - मधु (शहद), "कपिलाशुकलं" - भूरा, "षड्वल्गं" - छह प्रकार के, "च" - और, "रम्यम्" - सुंदर, "शीतं" - ठंडा, "मधुरं" - मीठा, "कटुकं" - कड़वा, "च" - और, "मधु" - मधु (शहद), "श्लेष्मल" - श्लेष्म (कफ) को हरने वाला, "हरं" - हरने वाला, "भवेत्" - होता है।
इस श्लोक के अनुसार, छह प्रकार के मधु होते हैं और वे सफेद, भूरा, लाल, आम के फूलों से जूस इकट्ठा करके बना होता है। ये छह प्रकार के मधु सुंदर होते हैं, ठंडे, मीठे, कड़वे, और कफ को हराने वाले होते हैं।

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